श्रीदेवी के बहाने महिलाओं के दिल की बात
डॉक्टर के.के. अग्रवाल
सेहतराग आपको पहले भी महिलाओं में हृदय रोग के बारे में बता चुका है और तब भी यह बात बताई गई थी कि आधी आबादी में हृदय रोग का पता लगाना आसान नहीं होता है। बॉलीवुड की पहली महिला सुपर स्टार का दर्जा पाने वाली अभिनेत्री श्रीदेवी की मौत ने इस तथ्य को और मजबूती से स्थापित किया है। यह बात ध्यान रखने की है कि खुद श्रीदेवी 1999 में देश की जनता के बीच हृदय रोग के प्रति जागरूकता फैलाने की मुहिम से जुड़ी रही थीं।
महिलाओं में हृदय रोग
करीब 38 वर्षों तक चले फ्रैमिंघम हार्ट स्टडी के नतीजे महिलाओं में हृदय रोग के बारे में कुछ चौंकाने वाले आंकड़े हमारे सामने रखते हैं। इस स्टडी के अनुसार:
महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले सडन कार्डिएक डेथ यानी एससीडी के मामले अपेक्षाकृत कम होते हैं। बल्कि हृदय रोग से जूझ रहे पुरुषों के मुकाबले हृदय रोग से जूझ रही महिलाओं में तत्काल मृत्यु का जोखिम आधा होता है। इसी प्रकार यदि पुरुषों और महिलाओं में हृदय रोग के बारे में पहले से पता नहीं चला हो तो इस केस में महिलाओं में बीमारी से मौत का जोखिम पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होता है। पुरुषों में 44 फीसदी के मुकाबले महिलाओं में यह प्रतिशत 63 है। हालांकि खास बात यह है कि हार्ट फेल वाले कुल मरीजों में महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले सिर्फ एक तिहाई है। महिलाओं में सडन कार्डिएक डेथ का जोखिम उनमें इस बीमारी के फोबिया और एंजाइटी से जुड़ा हुआ है।
हार्ट अटैक: महिला बनाम पुरुष
महिलाओं में हृदय रोग का पता लगाना पुरुषों के मुकाबले ज्यादा कठिन होता है।
महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले करीब 10 वर्ष की देरी से यह बीमारी होती है।
महिलाओं में बीमारी होने पर जोखिम घटक बड़ा होता है।
महिलाओं में एंजाइना की समस्या आमतौर पर पुरुषों की तरह नहीं होती है।
महिलाओं को यदि छाती में दर्द की समस्या के बाद आपातकालीन रूप में लाया जाता है उनका इलाज और जांच आदि पुरुषों की तरह ज्यादा आक्रामकता से नहीं किया जाता है।
महिलाओं में हार्ट अटैक की बनिस्पत एंजाइना की समस्या होने के चांस ज्यादा होते हैं मगर महिलाओं में हार्ट अटैक होने पर मौत की आशंका अधिक होती है।
यदि महिलाओं में कम उम्र में और खासकर ऐसी महिलाएं जिन्हें मधुमेह भी हो उनमें हार्ट अटैक के अधिकांश मामलों का पता ही नहीं चल पाता।
ऐसी महिलाएं जो हृदय रोग के जोखिम वाले घटक में आदि हैं यानी जिनके परिवार में हिस्ट्री रही हो हार्ट अटैक या हृदय रोग की या फिर जिनकी जीवनशैली हृदय रोग के जोखिम वाली है उन्हें नियमित रूप से इसकी जांच करवानी चाहिए।
महिलाओं में ट्रेडमिल एक्सरसाइज टेस्ट यानी टीएमटी के गलत रूप से पॉजिटिव आने की दर पुरुषों के मुकाबले अधिक होती है। साफ शब्दों में कहें तो हो सकता है टीएमटी हृदय रोग का संकेत दे मगर आपको हृदय रोग हो नहीं।
छाती में दर्द की शिकायत वाले मरीजों में जब एंजियोग्राफी की जाती है तो पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में कोरोनरी हार्ट डिजीज का आंकड़ा कम निकलता है।
ऐसी महिलाएं जिनमें छाती में दर्द होता है मगर एंजियोग्राफी के दौरान कोरोनरी ब्लॉकेज नहीं निकलता है उनमें आमतौर पर कार्डिएक सिंड्रोम या माइक्रोवास्कूलर डिजीज या दुर्लभ मामलों में कार्डियोपैथी अथवा कोरोनरी डिसेक्शन की समस्या हो सकती है।
हृदय रोग की पहचान
छह मिनट टहलना: यदि आप बिना किसी परेशानी के छह मिनट में 500 मीटर चल सकते हैं तो आपको किसी तरह की गंभीर कोरोनरी ब्लॉकेज शायद नहीं है। इसी प्रकार यदि आप तेजी से 2 किलोमीटर चल सकते हैं या दो मंजिल सीढ़ियां चढ़ सकते हैं तब भी आपको गंभीर ब्लॉकेज शायद नहीं है।
40 साल की उम्र के बाद किसी भी तरह के अचानक होने वाली कमजोरी, थकान, अचानक सीने में जलन या पहली बार अचानक होने वाली सांस की कमी को नजरंदाज न करें।
यदि आपके परिवार में किसी पुरुष को 55 साल की उम्र से पहले और महिला को 65 साल की उम्र से पहले किसी तरह का हृदय रोग सामने आए तो ये हृदय रोग के पारिवारिक हिस्ट्री के रूप में माना जाएगा और इस परिवार की बाद वाली पीढ़ियों को सतर्क रहना चाहिए।
यदि श्रीदेवी के सडन कार्डिएक डेथ की वजह हृदय में ब्लॉकेज की वजह है तो उनके परिवार की भावी पीढ़ी को सतर्क रहने की जरूरत है।
सडन कार्डिएक अरेस्ट की स्थिति में क्या करें
सडन कार्डिएग अरेस्ट यानी एससीए और एससीडी का अर्थ है शरीर में ऑगेनाइज्ड कार्डिएक इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी का अचानक से थम जाना।
यदि सीपीआर, डीफाइब्रिलेशन, कार्डियोवर्सन, एंटी एरिदृमिक ड्रग्स आदि से ये एक्टिविटी फिर से शुरू हो जाती है यानी शरीर में रक्त का संचार चालू हो जाता है तो इसे सडन कार्डिएक अरेस्ट कहा जाता है और यदि ये उपाय कारगर नहीं होते तो इसे सडन कार्डिएक डेथ कहते हैं।
अलग-अलग मरीजों में इस स्थिति के आने के सटीक कारण का पता लगा पाना लगभग असंभव है क्योंकि इस स्थिति के कारण मौत के मुंह में जाने वाले मरीजों में से अधिकांश में उनके कोलेप्स होने के समय कार्डियो इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को मॉनिटर नहीं किया जाता है।
हालांकि ऐसे मरीज जिनके कोलेप्स होने के समय इस एक्टिविटी को मॉनिटर किया जा रहा था, उनमें से अधिकांश में यह देखा गया कि कोलेप्स होने के समय उनके दिल की धड़कनी यानी हृदय गति बेहद तेज और अनियमित हो गई थी।
एससीडी के लिए जिम्मेदारी वेंट्रीक्यूलर टेकी अरिद्मिया के लिए कई हृदय या गैर हृदय रोग संबंधी कारक हो सकते हैं। सडन कार्डिएक डेथ के सभी उम्र समूहों पर हुआ अध्ययन बताता है कि ऐसे मामलों में 65 से 70 फीसदी केस कोरोनरी हार्ट डिजीज मुख्य कारण होता है जबकि अन्य स्ट्रक्चरल कार्डिएक डिजीज करीब 10 फीसदी, अरिद्मिया यानी अनियमित हृदय गति करीब 5 से 10 फीसदी और गैर कार्डिएक वजह से 15 से 25 फीसदी मौतें होती हैं।
सडन कार्डिएक अरेस्ट की स्थिति में तत्काल सीपीआर 10 यानी छाती को जोर से दबाने और मुंह से सांस देने की प्रक्रिया तबतक करनी चाहिए जबतक कि मेडिकल सहायता और इलेक्ट्रिक शॉक मशीन की सेवा उपलब्ध न हो जाए।
यह सुझाव भी सडन कार्डिएक डेथ की स्थिति में जरूर देना चाहिए कि मृत व्यक्ति का वर्चुअल ऑटोप्सी और ब्लड मॉलीक्यूलर टेस्ट करवाया जाए ताकि यह पता लगाया जा सके कि उस शख्स की आने वाली पीढ़ीयों को किस हद तक इस बीमारी का खतरा है।
(लेखक दिल्ली के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ हैं और हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष तथा इंडियन मेडिकल काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष हैं)
फोटो कैप्शन: श्रीदेवी के साथ डॉक्टर के.के. अग्रवाल। तब श्रीदेवी ने हृदय रोग के बारे में स्लोगन चुना था लाफ्टर इज द बेस्ट मेडिसीन यानी हंसना सबसे अच्छी दवाई है। फोटो साभार: डॉक्टर के.के. अग्रवाल।
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